साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
जैसा चलता है चलने दे, सूरज ढलता है ढलने दे। तम को है दूर भगाने को, दीपक जलता है जलने दे। शम्मा महफ़िल में जलती है, औ मोम गले तो गलने दे। है काम टलेगा अब कल पर, जब टलता है तो टलने दे। गर पोल खुली है जब उसकी, यदि खुलती है तो खुलने दे। जड़ से है मानो पेड़ हिला, अब हिलता है तो हिलने दे।
अगली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें