जाने क्यों लोग राह से यों, भटक जाते हैं।
जाने क्यों लोग...।।
दर्द सह लेते हैं, दवा नहीं लेते हैं।
दर्द सस्ता, दवा को महँगी, कह देते हैं।
दारू पानी सा गटा-गट, गटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग राह से यों भटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग...।।
वादे कर जाते हैं, महज़ बहकाते हैं,
वोट पा लेते हैं, बीज खा जाते हैं।
पानी पी, प्यास बुझा प्याला पटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग राह से यों, भटक जाते हैं।
जाने क्यों लोग...।।
आम खा जाते हैं, छिलके रख जाते हैं,
मतलबी दुनिया के, कैसे ये नाते हैं।
बोट औरों की बग़िया के भी झटक लाते हैं।।
जाने क्यों लोग राह यों, भटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग...।।
फ़र्ज़ करता है जो, कहते वो फ़र्ज़ी है,
जो है ही फ़र्ज़ी उसे कहते उसकी मर्ज़ी है।
फ़र्ज़ी मुद्दों में असल मुद्दे लटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग राह यों, भटक जाते हैं।
जाने क्यों लोग...।।
बाढ घोटालों की, मौज है दलालों की।
घर के कूडे़ को रहने दो, सफ़ाई नालों की।।
बढ़ते-बढ़ते पग राह में ही अटक जाते हैं।।
जाने क्यों लोग राह यों भटक जाते हैं।
जाने क्यों लोग...।।
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