साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
जयपुर, राजस्थान
1952
इतना पास अपने कि बस धुँध में हूँ गिर गए सारे पराजित-पत्र वृक्ष-साधु और चीलें, हतप्रभ! 'हो कहाँ अब लौट आओ'—सुन रहा अपनी पुकारें आवाज़ एक अंधा कुआँ है, जल नहीं, जिसमें बरस हैं बस जो गया, वह मृत्यु था जो नया, वह बचा है—जल सुन रहा अपनी पुकारें मैं निरंतर— दोगे किन्हें ये पुराने स्वप्न— अपने बाद? क्लांत यायावर!
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