बेटी के रोने की
आवाज़ सुनाई देती है
सामने ख़ाली दूध का
डिब्बा दिखता है
मुझे पत्नी की छाती
याद आती है
बहुत कठिन है
सोच सकना
कि सब कुछ
तय किया जा चुका होता है
हमारे सोचने से पहले
इसलिए लिखने को
कुछ भी नहीं रह जाता है
सिवाय 'भूख' के
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।