सब की नज़रों से गिर जाना क्या होता है।
बोलो गिरकर फिर उठ पाना क्या होता है।।
कैसे कहा गिरा कोई सबकी नज़रों से,
कहो ज़रा इसका पैमाना क्या होता है।
गिरता वो है जो उड़ता है बिना पंख के,
हम क्या जाने यूँ उड़ जाना क्या होता है।
ख़ुद को सब कहकर कहते वो अपने मन की,
बोलो ऐसे बात बनाना क्या होता है।
भटक रहे जो तन के सुख की ख़ातिर जग में,
क्या जाने मन का सुख पाना क्या होता है।
देह नहीं कवि रूह रूह ही अपनी दुनिया,
सब क्या जानें यूँ जी पाना क्या होता है।
जो धरती पर थे अब भी हैं धरती पर ही,
उनसे सीखो क़दम जमाना क्या होता है।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें