साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बेगूसराय, बिहार
1983
जिसका जग में कोई नहीं, जो सब से अज्ञान। भक्ति के सागर में डूबो, बन जाओगे महान। एक हरि ही तो हैं तेरे, बाक़ी सब अनजान। बिन काम के आता न कोई, बस आते भगवान। यह है सत्य महान, तू मान ले इंसान। करुणा के सागर हैं ईश्वर, जो देते हमको ज्ञान। जो माँगो वो सब देते हैं, कुछ लेते नहीं हैं श्याम। वो ईश्वर बड़े महान, तू जान ले इंसान।
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