ईश्वर है या नहीं,
कोई नहीं जानता।
कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को मानते हैं
और कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को
काल्पनिक कहकर
नकार देते हैं।
लेकिन एक बात तो तय है, कि–
ईश्वर के अस्तित्त्व की कहानियाँ
(भले ही वे काल्पनिक हों)
समाज को नैतिक बनाती हैं।
यानि कि, 'ईश्वर'
'नैतिकता' का
समानार्थी है।
नैतिकता बचाए रखने के लिए
सबसे ज़्यादा ज़रूरी है
ईश्वर को बचाए रखना।