इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता (कविता)

इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता
‘फ़ाउल’ होते हैं बेशुमार मगर
‘पेनल्टी कॉर्नर’ नहीं मिलता!

दोनों टीमें जुनूँ में दौड़ती, दौड़ाए रहती हैं
छीना-झपटी भी, धौल-धप्पा भी
बात बात पे ‘फ़्री किक’ भी मार लेते हैं
और दोनों ही ‘गोल’ करते हैं!

इश्क़ में जो भी हो वो जाईज़ है
इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!


रचनाकार : गुलज़ार
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