इश्क़ (कविता)

इश्क़ इबादत है,
तो ख़ता क्या है।
हमने इश्क़ किया है,
बता दो की सज़ा क्या है।
यूँ ही नहीं बना था ताजमहल,
हमारी माशूक़ा मुमताज़ नहीं,
तो बता क्या है।
आईने हमने भी रखे थे घर में,
टूट कर बिखर गया,
तो ख़ता क्या है।
जिसे देख कर,
इतराता था ज़माना हरदम।
वो मेरी माशूक़ा है तो,
बता बचा क्या है।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 24 अप्रैल, 2005
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