पृष्ठभूमि के नाम पर यों समझिए
कि बाक़ी दुनिया अँधेरे में है
बीच में एक मेज़ है
जिसके गिर्द लोग बैठे हैं
कुछ खड़े भी हैं।
सबकी आँखें मेज़ पर लगी हैं।
इंतज़ार।
एक प्याले से
काला गेहुँअन सर निकालता है
निडर होकर इधर-उधर देखता है
साधकों की भीड़ में से कोई
मंत्र फूँक कर तिल मारता है
अचूक।
गेहूँअन लड़खड़ाता है
मूर्छित होता है
प्याले में वापस चला जाता है
साधक अट्टहास करते हैं
एक दौर हुआ।
फिर किसी दूसरे प्याले से
सहमता हुआ गेहुँअन निकलता है
निडर होता है, झूमता है
डसने के लिए लहर लेता है
कोई और साधक
फिर फूँक कर नित मारता है
गेहुँअन लड़खड़ाता है
लोग चुसकियाँ लेते हैं
एक और दौर हुआ।
इसी तरह दौर पर दौर
दौर पर दौर
शाम भर।
इसी तरह शाम पर शाम
शाम पर शाम
उम्र भर।

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