इस बार नहीं चूकूँगा (कविता)

ठान लिया अब मैंने मन में, बिगुल नया फूकूँगा,
चूक रहा था मैं अब तक, इस बार नहीं चूकूँगा।

कहाँ-कहाँ ग़लती की, समझ गया हूँ मैं अब,
जहाँ-जहाँ उलझा था, सुलझ गया हूँ मैं अब।

मैं रहूँगा असफल ही, कुछ लोग मुझे भूले हैं,
आर्थिक आकलन करके मेरा, दौलत में झूले हैं।

हालात विपरीत हों चाहे, विश्वास न खोने दूँगा,
भीमराव का वंशज हूँ, दु:खी न मन होने दूँगा।

जीतूँगा हरहाल में अब मैं, ये मैंने ठान लिया,
है चमत्कार को नमस्कार ही, ये मैंने जान लिया।

चेहरे कितने असली-नकली, ये मैं पहचान गया,
साथी कितने असली-नकली, ये मैं जान गया।

गुण-अवगुण देखे ना कोई, बात नहीं ये खोटी है,
अब तुम चहुँओर देखलो, दौलत सम्मान कसौटी है।


लेखन तिथि : 4 जनवरी, 2022
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संत कबीर


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