इक फ़साना सुन गए इक कह गए (ग़ज़ल)

इक फ़साना सुन गए इक कह गए,
मैं जो रोया मुस्कुरा कर रह गए।

या तिरे मोहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल,
या इन्हीं आँखों से दरिया बह गए।

मौत उन का मुँह ही तकती रह गई,
जो तिरी फ़ुर्क़त के सदमे सह गए।

तू सलामत है तो हम ऐ दर्द-ए-दिल,
मर ही जाएँगे जो जीते रह गए।

फिर किसी की याद ने तड़पा दिया,
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए।

उठ गए दुनिया से 'फ़ानी' अहल-ए-ज़ौक़,
एक हम मरने को ज़िंदा रह गए।


यह पृष्ठ 197 बार देखा गया है
×

अगली रचना

हर साँस के साथ जा रहा हूँ


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें