हम ज़माना भूल बैठे दिल लगाने के लिए (ग़ज़ल)

हम ज़माना भूल बैठे दिल लगाने के लिए,
माँग हम सिंदूर से उसकी सजाने के लिए।

रूठना नखरे दिखाना ये तभी अच्छा लगे,
पास जब हमदर्द हो कोई मनाने के लिए।

मुश्किलें कितनी पड़ें डटकर करेंगे सामना,
कर लिया है प्रण उसे अपना बनाने के लिए।

जो सुने दिल की हमे महबूब ऐसा चाहिए,
साथ दे दुख दर्द में हमको हँसाने के लिए।

याद में उसके कई मजनूँ बने शायर यहाँ,
लिख रहे ग़म शायरी अब गुनगुनाने के लिए।

कर रहे मजबूरियों में शायरी ग़ालिब यहाँ,
मिल रहा आराम इससे ग़म छुपाने के लिए।


लेखन तिथि : 15 अगस्त, 2021
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अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती: 2122 2122 2122 212
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