होम करते हाँथ जलते,
चाँद उगता सूर्य ढलते।
वे अदब से बोलते हैं,
पर हमें शादाब खलते।
ठूँठ सा इक वृक्ष है पर,
फल वहाँ पर ख़ाक फलते।
चाँदनी फैली जहाँ में,
जेठ से संभाग जलते।
दोस्त भी हैं यार भी हैं,
मूँग छाती पर न दलते।
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