हवाई जहाज़ बनी साईकिल (कविता)

ज़िंदगी कैसे-कैसे कहाँ से कहाँ ले जाती है,
जुनूनी मेहनत भी कहाँ से कहाँ पहुँचाती है।
ये उनसे पूछो जिससे किसी ने सोचा नहीं था,
जिसने मेहनत के आगे कभी घुटने टेका नहीं था।

कड़ी मेहनत और लगन से तक़दीर बदलने की,
दुनिया में भरी पड़ी है ज़माने से अनेक कहानी।
आज नहीं लिखता मैंं‌ किसी और की कहानी,
आज कलमबद्ध करता हूँ मैं अपनी कहानी।

था साधारण घर का एक साधारण सा बच्चा,
शुरु से कुछ कर गुज़रने में लगता था अच्छा।
परिस्थितियों से जूझने में भी लगता था अच्छा,
छल-कपट से अलग रहने की होती थी इच्छा।

जब आया जीवन बनाने के लिए पढ़ाई की बारी,
तब आर्थिक तंगी में साईकिल बनी मेरी सवारी।
कॉलेज़, लाईब्रेरी या हो घर के कामों की बारी,
हर हालात में मेरी साईकिल निभाई मेरी यारी।

समाज में अक्सर कुछ लोगों का ताना मिलता था,
जल्दी नौकरी न पकड़ने का उलाहना मिलता था।
सब अनसुना कर पिता की बात को अमल किया,
आख़िर में मैं एक बहुत उच्चे पद को प्राप्त किया।

भूला नहीं कभी मैं वो सारे कष्ट जो मैनें झेली थी,
न भूला मैं वो साईकिल जो दम से बाहर चलती थी।
कब? जब हवाई जहाज़ बनी मेरी आम सवारी थी,
और समाज की सरहाना की झड़ी लगी रहती थी।

मैंने भी अपनी ज़िंदगी से कामयाबी की सीख सीखी,
अगर है बड़ी मंज़िल तो बड़ी मुश्किलों की कोह देखी।
हिम्मत और मेहनत को तक़दीर बदलने की कुँजी देखी,
हवाई-जहाज पर साईकिल जैसी अपनी सवारी देखी।


लेखन तिथि : 16 जनवरी, 2022
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