साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश
1917 - 2007
हंस के समान दिन उड़ कर चला गया अभी उड़ कर चला गया पृथ्वी आकाश डूबे स्वर्ण की तरंगों में गूँजे स्वर ध्यान-हरण मन की उमंगों में बंदी कर मन को वह खग चला गया अभी उड़ कर चला गया कोयल सी श्यामा सी रात निविड़ मौन पास आई जैसे बँध कर बिखर रहा शिशिर-श्वास प्रिय संगी मन का वह खग चला गया अभी उड़ कर चला गया।
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