साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3518
महेन्द्रगढ़, हरियाणा
1992
उसे घर से निकाला घर जिसने संभाला। पढ़े-लिखे बगुलों का काला किरदार है। माया जिन पे चढ़ादी देह अपनी लुटादी। बोलियाँ वे बोलते की पैसा सरदार है। ममता से मिला हल दुवाओं में सदा बल आँचल को भूल कर ढूँढ़ते दुलार है। ज्ञानी ज्ञान दीन हुए भाव अर्थहीन हुए। ब्याज ही चुका दो बेटों मूल का उधार है।
अगली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें