मेरे हाथ में क़लम थी
और सामने विश्व का मानचित्र
मैं उसमें महान दार्शनिकों
और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगा
जिन्हें मैं गा सकूँ
लेकिन मुझे दिखाई दी
क्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरें
उस पार के इंसानी ख़ून से
इस पार की लकीर
और इस पार के इंसानी ख़ून से
उस पार की लकीर
मानचित्र की तमाम टेढ़ी-मेढ़ी
रेखाओं को मिलाकर भी
मैं ढूँढ़ नहीं पाया
एक आदमी का चेहरा उभारने वाली रेखा
मेरी गर्दन ग्लोब की तरह ही झुक गई
और मैं रोने लगा
तमाम सुनाए-बताए
तर्कों को दरकिनार करते हुए
आज मैंने जाना
ग्लोब की गर्दन झुकी हुई क्यों है।
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