छूछी गागर से
रीते संबंध हुए।
रिश्ते सिक्कों से
खनकते थे।
बैठकर दिन
टिकोरे चखते थे।
उजड्ड लहरों से
घायल तटबंध हुए।
उल्लास पलक
झपकते ग़ायब।
हुआ है वक्त
दुखों का नायब।
गुनगुनी धूप से
प्राणी सब अंध हुए।

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