आँखों की बंजर ज़मीन पर
आँसू ऊग गए।
ग़म के साए भाग्य की
डाली पर लटके।
संगी-साथी दे रहे
झटके पर झटके।।
जो भी रवि की भाँति उगे
पश्चिम में डूब गए।
जीवन भी झंझावातों से
भरा पड़ा है।
और अनैतिक बातों का
आकार बढ़ा है।।
सुनते-सुनते राम कहानी
हम तो ऊब गए।
पग-पग पर पहरे कड़े
मारा-मारी है।
नेकी की टहल की
ईश्वर को प्यारी है।।
उत्तर की ओर जाना था
पर हम जनूब गए।

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