गीत नया गाता हूँ (कविता)

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ।

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ।


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स्रोत :
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ
पृष्ठ संख्या : 23
सम्पादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा
प्रकाशन: किताबघर प्रकान
संस्करण: 2017
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