साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
1896 - 1961
गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, हाथ जो पाथेय थे, ठग— ठाकुरों ने रात लूटे, कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो। भर गया है ज़हर से संसार जैसे हार खाकर, देखते हैं लोग लोगों को सही परिचय न पाकर, बुझ गई है लौ पृथा की, जल उठी फिर सींचने को।
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