गंगा मइया (कविता)

अमृत है तेरा निर्मल जल
हे! पावन गंगा मइया।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।
माँ सब के पाप मिटा दो
हे! पापनाशिनी मइया।
अब सारे क्लेश मिटा दो
हे! पतित पावनी मइया।
भागीरथ के तप बल से
तुम आई धरणि पर मइया।
शिवशंकर के जटा जूट से
प्रगट हुई थी मइया।
हे! जान्हवी हे! मोक्षदायिनी
अब पार लगा दो नइया।
सगरसुतों को तारण वाली
भव पार लगा दो मइया।
इस धरती पर ख़ुशहाली
तुमसे ही गंगे मइया।
आँचल तेरे जीना मरना
हम सबका होवे मइया।
माँ शरण तुम्हारी आई
हे! मुक्तिदायिनी मइया।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।


लेखन तिथि : 10 नवम्बर, 2020
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