ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम
ए जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
रहने दे अभी थोड़ा सा भरम
ए जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
हम चाहने वाले हैं तेरे
यूँ हम को जलाना ठीक नहीं
महफ़िल में तमाशा बन जाएँ
इस तरह बुलाना ठीक नहीं
मर जाएँगे हम मिट जाएँगे हम
ए जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
हम भी थे तिरे मंज़ूर-ए-नज़र
दिल चाहे तो अब इंकार न कर
सौ तीर चला सीने पे मगर
बेगानों से मिल के वार न कर
तुझ को तिरी बेदर्दी की क़सम
ए जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
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