समुंदरों के पानियों से नील अब उतर चुका
हवा के झोंके छूते हैं तो खुरदुरे से लगते हैं
बुझे हुए बहुत से टुकड़े आफ़्ताब के
जो गिरते हैं ज़मीन की तरफ़ तो ऐसा लगता है
कि दाँत गिरने लग गए हैं बुड्ढे आसमान के
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