फ़ज़ा (नज़्म)

फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है
पुराना लगता है मकाँ

समुंदरों के पानियों से नील अब उतर चुका
हवा के झोंके छूते हैं तो खुरदुरे से लगते हैं
बुझे हुए बहुत से टुकड़े आफ़्ताब के
जो गिरते हैं ज़मीन की तरफ़ तो ऐसा लगता है
कि दाँत गिरने लग गए हैं बुड्ढे आसमान के

फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है
पुराना लगता है मकाँ


रचनाकार : गुलज़ार
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