साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
देहरादून, उत्तराखण्ड
1911 - 1993
एक पीली शाम पतझर का ज़रा अटका हुआ पत्ता शांत मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुखकमल कृश म्लान हारा-सा (कि मैं हूँ वह मौन दर्पण में तुम्हारे कहीं?) वासना डूबी शिथिल पल में स्नेह काजल में लिए अद्भुत रूप-कोमलता अब गिरा अब गिरा वह अटका हुआ आँसू सांध्य तारक-सा अतल में।
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