साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रोहतक, हरियाणा
1976
एक जुट तेरे क़बीले हो गए, आज क्यों पत्थर लचीले हो गए। खेलकर आए हो होली ख़ून से, यार तुम कितने रँगीले हो गए। आइनों को तोड़ डाला आपने, टूटकर शीशे नुकीले हो गए। इसलिए दरिया हुआ ग़मगीन है, साहिलों के होंट गीले हो गए। राम नामी ओढ़कर वो पी गया, शैख़ जी के सुर नशीले हो गए। हरखुआ को नींद अब आ जाएगी, बेटियों के हाथ पीले हो गए।
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