एक जुट तेरे क़बीले हो गए (ग़ज़ल)

एक जुट तेरे क़बीले हो गए,
आज क्यों पत्थर लचीले हो गए।

खेलकर आए हो होली ख़ून से,
यार तुम कितने रँगीले हो गए।

आइनों को तोड़ डाला आपने,
टूटकर शीशे नुकीले हो गए।

इसलिए दरिया हुआ ग़मगीन है,
साहिलों के होंट गीले हो गए।

राम नामी ओढ़कर वो पी गया,
शैख़ जी के सुर नशीले हो गए।

हरखुआ को नींद अब आ जाएगी,
बेटियों के हाथ पीले हो गए।


रचनाकार : मनजीत भोला
  • विषय :
लेखन तिथि : 9 अक्टूबर, 2020
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