एक और पृथ्वी है औरत (कविता)

दरवाज़ों
खिड़कियों में
लटक गए हैं पर्दे
मेज़ में नया मेज़पोश
कुर्सियों में गद्दियाँ
तरतीब से सज गई हैं
मेज़-कुर्सियाँ
बदला जा रहा है
चादर
हो चुका था जो बदरंग।
रज़ाई-गद्दों के खोल
रंग गए हैं नील से
रसोई घर तो
पहचाना नहीं जा रहा है
नई दुल्हन की तरह
वहाँ हर चीज़ के लिए
नियत हो चुका है स्थान
बोयामों में
बंद हो चुकी है—
चीना, नमक, दाल, चायपत्ती आदि-आदि।
करछुल और चम्मचें
खड़ी हैं स्टैंड में।
चाकू सब्ज़ी की टोकरी में
जा चुकी है
कूकर में लगे पुराने दाग
निकाले जा रहे हैं।
मकान
बदल गया है घर में।
मन
बार-बार लौट आता है
घर की ओर
पृथ्वी का बल
पैदा हो गया है घर में
जिसका केंद्र है
औरत
पृथ्वी में
एक और पृथ्वी है
औरत।


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