दुख-पुराण (कविता)

नीले आकाश में उड़ती
चिड़ियों के हार से
जो चिड़ियाँ पीछे छूट जाती हैं

चरते हुई गायों के झुंड से
कोई बछड़ा पीछे रह जाता है
गड़रिए के बार-बार
टिटकारने के बावजूद भी
भेड़ों के गोल से
जो भेड़ छूट जाती है

बीच जंगल में भागते वक़्त
हिरणों के झुंड में
बार-बार शामिल रहने की
कोशिश करके भी
जो हिरण हार जाता है

सब चले जाते हैं
और जो छूट जाता है
गहराती साँझ में नदी में नाव चल देती है
माँझी को पुकारता कोई किनारे छूट जाता है
जो अदमी संगत, पंगत और विकास से छूट जाता है
जो टूट जाता है, जो हार जाता है

उसके दुख पर मैं लिखना चाहता हूँ
एक पुराण
अब तक के पुराणों से अलग
पुराणों के अर्थ को तोड़ता
छूट गए लोगों के दुखों की एक दास्तान!


रचनाकार : बद्री नारायण
यह पृष्ठ 273 बार देखा गया है
×

अगली रचना

प्रेमपत्र


पिछली रचना

समकालीन
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें