भूल की धूल को छाँटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बाँटना ही होगा।
मोम से पिघलते ये रिश्ते औ नाते,
झूठी-झूठी कसमें, झूठे-झूठे वादे,
विष भरे बरगद को काटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बाँटना ही होगा॥
मज़हब से उपर उठो मेरे भाई,
ख़त्म करो मज़हब की अंधी लड़ाई,
नफ़रत भरी खाई को पाटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बाँटना ही होगा॥
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