चमकती हुई धूप सुबह की
चीरती घने बादलों को चुपचाप
देखते भूल गया मैं आकाश को
दुखते हुए हाथ को,
पानी में डबडबाते प्रतिबिंब की सलवटें देखते
मैं भूल गया
अपनी उम्र को,
झूमती हुई हरियाली में लहूलुहान छायाओं को देखते
भूल गया मृतकों के वर्तमान को
जो सोचा करने लगा कुछ और,
घोलता नीले आकाश में बादलों के झाबे को
मैं धो रहा हूँ अपने को
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