धरोहर (कविता)

हम सबके लिए
हमारे बुज़ुर्ग धरोहर की तरह हैं,
जिस तरह हम सब
रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को
सम्मान देते आ रहे हैं
ठीक उसी तरह
बुज़ुर्गों का भी सम्मान
बना रहना चाहिए।
मगर यह विडंबना ही है
कि आज हमारे बुज़ुर्ग
उपेक्षित, असहाय से
होते जा रहे हैं,
हमारी कारस्तानियों से
निराश भी हो रहे हैं।
मगर हम भूल रहे हैं
कल हम भी उसी कतार की ओर
धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।
अब समय है संभल जाइए
बुज़ुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से
अपने आपको बचाइए।
बुज़ुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे
छाँव ही है,
उनकी छाँव को हम अपना
सौभाग्य समझें,
उनकी सेवा के मौक़े को
अपना अहोभाग्य समझें।
सबके भाग्य में
ये सुख लिखा नहीं होता,
क़िस्मत वाला होता है वो
जिसको बुज़ुर्गों की छाँव में
रहने का सौभाग्य मिलता।
हम सबको इस धरोहर को
हर पल बचाने का
प्रयास करना चाहिए,
बुज़ुर्गों की छत्रछाया का
अभिमान करना चाहिए।
सच मानिए ख़ुशियाँ
आपके पास नाचेंगी,
आपको जीवन की तभी
असली ख़ुशी महसूस होगी।


लेखन तिथि : दिसम्बर, 2020
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