धरा से शिखर तक तिरंगा (कविता)

यह धरा है स्वाभिमान की,
यह धरा है हनुमान की।
इस धरा की बात निराली,
यहाँ की हर लड़की है काली।
इस धरती से टकराने की हर मनसा का हवन करो,
भला इसी में हाथ जोड़ बस राम नाम का भजन करो।
याद करो अब्दुल हमीद को,
याद करो भगत के ज़िद को।
याद करो उद्धम के काम को,
याद करो तुम प्रभु श्री राम को।
नब्बे हज़ार उन निशाचरों को हमने पल में संत किए,
दो तपसी भारत से चल कर दानव दल का अंत किए।
हम उस राम के वंशज हैं यह दुविधा वाली बात नहीं,
हमें कोई भी हरा सके है दुनियाँ की औक़ात नहीं।
आज़ादी आज़ाद रखेंगे ऐसा वचन हमारा है,
आज़ाद हिंद में सब आज़ाद हैं ऐसे वतन हमारा है।
लाखों मस्तक दिए हैं हमने तब आज़ादी आया है,
क़ुर्बानी के उत्तुंग शिखर पर दिव्य तिरंगा लहराया है।


रचनाकार : अभिषेक अजनबी
लेखन तिथि : 12 अगस्त, 2022
यह पृष्ठ 101 बार देखा गया है
×

अगली रचना

कन्या भ्रुण हत्या


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें