देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा (ग़ज़ल)

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा,
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा।

उस का जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा।

मुझ को था ये गुमाँ कि मुझी में है इक अना,
देखी तिरी अना तो मुझे सोचना पड़ा।

दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझ से है,
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा।

सर को छुपाऊँ अपने कि पैरों को ढाँप लूँ,
छोटी सी थी रिदा तो मुझे सोचना पड़ा।

इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़',
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा।


रचनाकार : फ़राग़ रोहवी
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