साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
1941
खोलना, बंद करना; सारे-सारे दिन, सारी-सारी रात; और करने को क्या है हमारे पास। सिर्फ़ दरवाज़े मिले हैं खोल लिए तो बंद, बंद किए तो खुले। छह हज़ार साल बुड्ढा दर्प अपना ओज। चाँद को फोड़े हमारा हम। आकाश और पाताल भेदी हम। खोलते, बंद करते रहे कभी ख़ुद को कभी तुम को। और कुछ नहीं तो द्वार से बिंध-बिंध गए। बंद और खुल कर रह गए हम।
अगली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें