साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
देहरादून, उत्तराखण्ड
1911 - 1993
चुका भी हूँ मैं नहीं कहाँ किया मैंने प्रेम अभी। जब करूँगा प्रेम पिघल उठेंगे युगों के भूधर उफन उठेंगे सात सागर। किंतु मैं हूँ मौन आज कहाँ सजे मैंने साज अभी। सरल से भी गूढ़, गूढ़तर तत्तव निकलेंगे अमित विषमय जब मथेगा प्रेम सागर हृदय। निकटतम सबकी अपर शौर्य्यों की तुम तब बनोगी एक गहन मायामय प्राप्त सुख तुम बनोगी तब प्राप्त जय!
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