चिराग़ की लौ बुझने लगी,
अँधेरा अपना ख़ौफ़ फैलाने लगी।
तभी दूर एक शमा जली,
कौन था, क्या पता चला।
यह जीवन है, उसकी ही कहानी है,
जिसमे बड़ी छोटी है जवानी।
जब आता है बुढापा,
खो जाता है आपा।
इसे समझो, इसे जानो,
हर पल की क़ीमत पहचानो।
एक जीवन जाएगा,
कोई नया धरा पर आएगा।
कुछ ऐसा कर जाओ,
याद उन्हें भी आओ,
आने वाला शमा भी,
चिराग़ की दास्ताँ कहे।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें