आदिदेव आदित्य अर्घ्य दूँ,
धन मन जन कल्याण जगत हो।
पूजन दें छठ अर्घ्य साँझ हम,
हरें पाप जग मनुज त्राण हो।
राग द्वेष हर शोक मनुज जग,
हर शोक परीताप विकल हो।
आतंकी दानव बने जगत्,
करें नाश संताप सकल हो।
कन्द मूल ठकुआ प्रसून फल,
भर डागर फल सूप भरे हो।
हे दिनकर स्वीकारो पूजन,
तज निद्रा जग अरुणोदय हो।
महापर्व पूजन मैया छठ,
तीन दिवस उपवास व्रती हो।
करें सुखी पति पूत स्वस्थ मनुज,
भारती चहुँ प्रगति सजी हो।
धन वैभव सुख शान्ति जगत शुभ,
दें दुनिया आलोक मुदित हो।
प्रकटित प्रातः अरुणिमा हर्ष,
कर ग्रहण अर्घ्य शोक क्षयित हो।
काश्यपेय जीवन जगत शुभम,
सृष्टि विधायक सूर्य तनय हो।
सहस्रशिखा भानु हिरण्यमय,
पूजन अनुजा छठी सदय हो।
ग्रहाधीश रवि अश्व रथिक नभ,
भ्रमणशील जग आलोकित हो।
अति पावन पूजन छठी पर्व,
ज्योतिर्मय सरिता शुभ तट हो।
सिन्धु सरोवर सरित सरोवर,
जगमग दीप कछार सकल हो।
पोंछ व्रती पथ आँचर पावन,
दिनकर मन संचार नवल हो।
परम भक्ति छठ कठिन साधना,
विधि विधान उपवास व्रती हो।
निर्मल श्रद्धा शूचिता पूजा,
छठि पूजा जल सरित तटी हो।
दीनानाथ पूजन साँझ प्रभु,
फलदायी सभ काज मनुज हो।
अच्युत हर आतंक दनुज तम,
समरस जन समाज सहज हो।
हरें व्याधि मानस लोक मनुज,
भरें ज्योति नवप्रीत विमल हो।
प्रकृति मनोहर चारु सृष्टि शुभ,
मानवता संगीत मृदुल हो।
कर निकुंज विनत पुष्पित फलित,
जपे गायत्री मंत्र महत् हो।
करें मनोरथ पूर्ण मनुज जग,
हरें शत्रु षड्यंत्र विकट हो।
पूजन षष्ठी मातु लोक में,
करें सुमंगल विश्व शुभम हो।
नारायण हर तिमिर पाप जग,
बचे सृष्टि अस्तित्व शिवम हो।
नवप्रभात नवरंग भरें जग,
रंजित जन दुनिया विहान हो।
नमन सतत अवसान निशा जग,
रवि उषा जल अर्घ्य प्रदान हो।
पूजास्थल दे मनुज दण्डवत,
अस्त भानु अरु भोर अटल हो।
खड़े जोड़ जल व्रती युगल नत,
अर्घ्य सूर्य भर नोर विमल हो।

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