छाप (कविता)

मुरुम वाली ज़मीन पर नंगे पाँव
चलता हूँ
तो तलुवे लाल हो जाते हैं
धरती अपना रंग छोड़ देती है

किसी वन से गुज़रते हुए
गहराती साँझ
पक्षी जिस वृक्ष पर उतरते हैं
अपने पंख छोड़ देते हैं

फूल छोड़ देता है अपनी महक पवन में
पानी में मछली छोड़ देती है अपनी गंध

कैसा मैं मनुष्य हूँ
कि कहीं छोड़ नहीं पाता अपनी छाप
अपने मानुष होने की सुगंध
कहीं छोड़ नहीं पाता

धरती अपना रंग छोड़ देती है।


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