चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना!
ज़ालिम था वो घना अँधेरा
जिसने मेरा आँगन घेरा
बनते-बनते फिर से बिखरा
तेरे द्वारे का पगफेरा
शायद कोई फेंक रहा है
तुझ पर, मुझ पर जादू-टोना
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना!
अब तुझसे क्या राज़ छिपाऊँ
तुझसे ही चाँदनी कहाऊँ
सूरज बुझता हो बुझ जाए
तेरे छिपने से घबराऊँ!
तुझसे, मुझसे ही रोशन है
धरा-सेज का कोना-कोना!
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना!

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