भेड़िया ख़ुश है (कविता)

दिन क़साई के छुरे जैसा
और रात जैसे शराब पीकर पागल हुआ हाथी
पॉकेटमार ने मार लिया है वसंत
बढ़ती आती हैं ठंडी हवाएँ
जैसे टेलीप्रिंटर से ख़बरें लगातार
भेड़िए ने अपनी खाल उतारकर
शहर के शांत चेहरे पर फेंक दी है
कुछ लोगों के चेहरों पर
उगने लगे हैं भेड़िए के बाल
भेड़िया खाल उतार कर ख़ुश है
जबकि ग़ायब हो गया है शहर का चेहरा
और भेड़िया ख़ुश है...


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