साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
खगड़िया, बिहार
1983
कोई अगर आँख बंद किए चल रहा है हाथ पकड़ कर तो उसके रास्ते के पत्थर देखना सँभालना गिरने से पहले जब भी वह कुछ कहे तो सुनना देखना कि उसकी आँखें क्या देखना चाहती हैं सुनना उसकी हर आवाज़ जो कहने से पहले रुक जाए कंठ में बहुत मुश्किल से मिलता है वह कंधा जिस पर सिर टिकाया जाए तो ग्लानि नहीं हो सुकून मिले।
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