भारत (कविता)

तेरा रहा नहीं है कब रंग ढंग न्यारा।
कब था नहीं चमकता भारत तेरा सितारा॥
किसने भला नहीं कब जी में जगह तुझे दी।
किसकी भला रहा है तू आँख का न तारा॥
वह ज्ञान जोत सबसे, पहले जगी तुझी में।
जग जगमगा रहा है, जिसका मिले सहारा॥
किस जाति को नहीं है तूने गले लगाया।
किस देश में बही है तेरी न प्यार धारा॥
तू ही बहुत पते की यह बात है बताता।
सब में रमा हुआ है वह एक राम प्यारा॥
कुछ भेद हो भले ही, उनकी रहन सहन में।
पर एक अस्ल में हैं हिंदू तुरुक नसारा॥
उनमें कमाल अपना है जोत ही दिखाती।
रँग एक हो न रखता चाहे हरेक तारा॥
तो क्या हुआ अगर हैं प्याले तरह तरह के।
जब एक दूध उनमें है भर रहा तरारा॥
ऊँची निगाह तेरी लेगी मिला सभी को।
तेरा विचार देगा कर दूर भेद सारा॥
हलचल चहल पहल औ अनबन अमन बनेगी।
औ फूल जायगा बन जलता हुआ अँगारा॥
जो चैन चाँदनी में होंगे महल चमकते।
सुख-चाँद झोपड़ों में तो जायगा उतारा॥
कर हेल मेल हिलमिल सब ही रहें सहेंगे।
हो जायगा बहुत ही ऊँचा मिलाप पारा॥
सब जाति को रँगेगी तेरी मिलाप रंगत।
तेरा सुधार होगा सब देश को गवारा॥
उस काल प्रेम-धारा जग में उमग बहेगी।
घर-घर घहर उठेगा आनंद का नगारा॥


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