भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है (ग़ज़ल)

भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है,
हर एक शख़्स की आहट को घर समझता है।

हर एक दर को वो अपना ही दर समझता है,
मगर ज़माना उसे दर-ब-दर समझता है।

फल और शाख़ समझने में चूक जाएँ मगर,
है किस जगह का परिंदा शजर समझता है।

कुछ इस तरह से दिखाता है वो हुनर अपना,
कि जैसे सब को यहाँ बे-हुनर समझता है।


रचनाकार : अतुल अजनबी
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