बेशक नहीं पसंद वो नफ़रत न हम रखेंगे,
बस प्यार की वफ़ा की चाहत न हम रखेंगे।
ग़मगीन हैं फ़ज़ाएँ दहशत है खलबली है,
इस बेरहम हवा से क़ुरबत न हम रखेंगे।
होते रहे जो यूँ ही सब ख़ास दूर हमसे,
इक रोज़ ज़िंदगी की हसरत न हम रखेंगे।
सुनले चमकते सूरज रह लेंगे तीरगी में,
तेरे उजालों से तो निस्बत न हम रखेंगे।
ऐ रहनुमा हमारे ली देख रहनुमाई,
तुझ पर कभी भरोसा हज़रत न हम रखेंगे।
लफ़्ज़ों में ढल रहे हैं तुम देखना किताबें,
अब और बोलने की ज़हमत न हम रखेंगे।
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