सच कभी नही मरता अब ये पुरानी बातें हो गई है
कबीर ने उस ज़माने मे कितनी ही बातों को उधेड़ कर रख दिया है
पर आज भी क्या आँखें खुली है
चापलूसों की चापलुसियत हावी है
जंग-ए-कुर्सी पर।
भला हो उस राजनीति का
जिसमें झूठ की पुलिंदा न हो
ग़रीबो के घर की जुठीया न हो
हर अँगूठे की शिनाख़्त न हो
फिर भी मारी जाती है
तमाम जनता
कुछ मुठ्ठी भर क़द्दावर
और चापलूसों को छोड़कर।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
