बे-नियाज़ अब नहीं मिलेंगे,
पतझर में गुल कहाँ खिलेंगे।
नैतिकता का क़त्ल हुआ है,
धरती, अंबर, शिखर हिलेंगे।
नर्म-नर्म दूबों पर चलना,
पगडण्डी पर पाँव छिलेंगे।
आसमान फट जाए गर तो,
खारों से हम उसे सिलेंगे।
ख़ुशहाली घर-घर में होगी,
तब ही तोता गाय जिलेंगे।

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