बलि-पंथी से (कविता)

मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल,
कह फूल-फूल, सह फूल-फूल।
हरि को ही-तल में बंद किये,
केहरि से कह नख हूल-हूल।

कागों का सुन कर्तव्य-राग,
कोकिल-काकलि को भूल-भूल।
सुरपुर ठुकरा, आराध्य कहे,
तो चल रौरव के कूल-कूल।

भूखंड बिछा, आकाश ओढ़,
नयनोदक ले, मोदक प्रहार,
ब्रह्मांड हथेली पर उछाल,
अपने जीवन-धन को निहार।


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