बाल मज़दूर (कविता)

बंद करो यह अत्याचार,
बच्चे मिलते नहीं बाज़ार।
वो भी एक मानव ही हैं,
जिनको देना है अधिकार।
बंद करो यह अत्याचार,
बच्चे मिलते नहीं बाज़ार।

बच्चे तो कली उपवन के,
जो बिन सींचे मुरझा जाते।
बनने दो उनको भी फूल,
क्यों करते हो ऐसी भूल।
बंद करो यह अत्याचार,
बच्चे मिलते नहीं बाज़ार।

यह नहीं प्रकृति का नियम,
देना पड़ता बच्चों को जीवन।
क्या उनका अधिकार नहीं,
पढ़ना उनका काम नहीं।
फिर क्यों साथ देते हो उनका,
जो करते हैं अत्याचार।
बंद करो यह अत्याचार,
दो बच्चों को अधिकार।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 12 अक्टूबर, 2004
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