साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
जागे हैं खेतिहर अगहन में। जोतेंगे खेत बैल नहे हल। है साँझ लौटे चिड़ियों के दल।। पोई की पत्तियाँ अरहन में बजतीं हैँ फल्लियाँ अरहर की। बुरा वक़्त ठोकरें दर-दर की।। लाँक बनेगी आज दलहन में।
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